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उत्तर प्रदेश लखनऊ
इनपुट:सोशल मीडिया
लखनऊ:--"ममता सरकार से सवाल है—क्या यह वही ‘प्रगतिशील’ बंगाल है जिसकी बात आप करती हैं? क्या आज़ आप के लिए विकास का मतलब सिर्फ़ चंद धार्मिक वोटों की गिनती है?---राष्ट्रवादी चिंतक राजेश खुराना
लोकतांत्रिक में विरोध का भी एक संवैधानिक तरीका होता है, अगर आप वास्तव में भारत के नागरिक हैं, तो देशहित न्यायहित और जनहित को प्राथमिकता देनी होगी।---- राष्ट्रवादी चिंतक राजेश खुराना
ये शांति प्रिय देश हिंसा और आतंक से नहीं, संविधान और कानून से चलता हैं मनमानी से नहीं ---- राष्ट्रवादी चिंतक राजेश खुराना
आगरा, संजय साग़र सिंह। अमन पसंद और शन्ति प्रिय देश में छोटी छोटी बातों पर हो रहें दंगों पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रवादी चितक राजेश खुराना ने देशहित में कहा,"आज डॉ. बाबा साहब 134वें जन्मोत्सव पर जब देश भारत रत्न जननायक डॉ. अम्बेडकर जी की विचारधारा को स्मरण कर रहा है, उस समय दंगाइयों की हिम्मत इस बात की गवाही देती है कि ममता बैनर्जी की सरकार की प्रशासनिक ढिलाई ने दंगाइयों को सिर उठाने दिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि बंगाल में अब संबिधान और कानून का नहीं, बल्कि दंगाइयों की भीड़ का शासन चलता साफ़ साफ़ नजर आ रहा है।
श्री खुराना ने कहा,"हिंदू त्योहारों पर लगातार हमला, सांप्रदायिक तनाव, और प्रशासन की निष्क्रियता, सब एक भयानक सच्चाई की ओर इशारा करते हैं—कि बंगाल राज्य की शासन व्यवस्था केवल चुनिंदा वर्गों एवं दंगाइयों को संतुष्ट करने के लिए चल रही है, जबकि आम ग़रीब नागरिक भय और असुरक्षा में जी रहा है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद सहित कई जिलों में हनुमान जयंती के अवसर पर जो हिंसा भड़की, उसने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ममता सरकार में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से दम तोड़ चुकी है?
उन्होंने बताया कि मुर्शिदाबाद, हुगली, 24 परगना और मालदा जिलों में वक्फ कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन देखते ही देखते हिंसा में बदल गए। ट्रेनें रोकी गईं, सड़कों पर आगजनी हुई, पुलिस पर पथराव किया गया, और कई स्थानों पर पुलिस वाहन जला दिए गए। स्थिति यह हो गई कि तीन निर्दोष ग़रीब लोगों की जान चली गई, सैकड़ों घायल हुए और हजारों लोग दंगाइयों के भय से पलायन को मजबूर हो गए। इन घटनाओं पर ममता बैनर्जी सरकार की चुप्पी, चिंता से कहीं ज़्यादा अब आशंका को जन्म देती है—क्या ये हिंसा ममता सरकार के प्रशासनिक विफलता है या देश विरोधी दंगाइयों की ग़रीब कमजोर समाज को डराने धमकाने की राजनीतिक रणनीति हैं ?
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अब देश यह जानना चाहता है कि जब राजधानी कोलकाता से चंद किलोमीटर की दूरी पर हिंसा फैल रही है, तो ममता सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है? क्या ममता बनर्जी की सत्ता की मजबूरी, कट्टरपंथी दंगाई तत्वों को खुली छूट देने की कीमत चुका रही है? मजहब के नाम पर असहाय गरीब क्षेत्रों जो दंगाइयों द्वारा अमानवीय हिंसा फैलाई जा रही है, वह न केवल संविधान का अपमान है, बल्कि भारत की आत्मा पर चोट है। लोकतंत्र में हर किसी को विरोध करने का अधिकार है, लेकिन वह विरोध सही पथ पर होना चाहिए, न कि पत्थर और पेट्रोल बम के जरिए।
आखिर में उन्होंने कहा, "ममता सरकार से सवाल है—क्या यह वही ‘प्रगतिशील’ बंगाल है जिसकी बात आप करती हैं? क्या आज़ आप के लिए विकास का मतलब सिर्फ़ चंद मजहवी वोटों की गिनती है? अब समुदाय विशेष के नेतृत्व को भी यह समझना चाहिए कि भारत कोई सल्तनत नहीं है, यह एक लोकतांत्रिक गणराज्य है। जहां विरोध का भी एक संवैधानिक तरीका होता है। अगर आप वास्तव में भारत के नागरिक हैं, तो देशहित और जनहित को प्राथमिकता देनी होगी। अब समय है कि पूरा देश एकजुट होकर यह कहे—अब भारत मनमानी, हिंसा और आतंक से नहीं, कानून, संविधान और राष्ट्रहित की भावना से चलेगा।