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इनपुट:सोशल मीडिया
सोशल मीडिया:---जब कक्षा 2 के बच्चे की महंगी किताबों को लेकर मजदूर पहुंचा कलेक्टर के पास – डीएम ने दिखाया सच्चा प्रशासनिक साहस
कहते हैं कि अगर प्रशासन संवेदनशील हो, तो आम आदमी की आवाज़ दूर तक सुनाई देती है। ऐसा ही एक वाकया हाल ही में सामने आया जब एक गरीब मजदूर अपने कक्षा 2 में पढ़ने वाले बच्चे की किताबें लेकर कलेक्टर ऑफिस पहुंचा। उसने बताया कि उसने स्कूल से किताबों का सेट ₹2130 में खरीदा है – वो भी सिर्फ दूसरी कक्षा के लिए!
यह सुनकर वहां मौजूद जिले के कलेक्टर (डीएम) स्तब्ध रह गए। उन्होंने तुरंत मामले को गंभीरता से लेते हुए स्कूल की मान्यता को सस्पेंड करने के आदेश दे दिए। इस फैसले से पूरे जिले में एक सख्त और साफ संदेश गया – शिक्षा को व्यापार नहीं बनने दिया जाएगा।
आज के समय में जब कई प्राइवेट स्कूल किताबों और यूनिफॉर्म के नाम पर अभिभावकों से मनमाना पैसा वसूलते हैं, तब एक सरकारी अधिकारी का ऐसा कड़ा कदम समाज में भरोसा जगाता है। डीएम का यह निर्णय केवल एक मजदूर की मदद नहीं था, बल्कि उन हजारों अभिभावकों के लिए राहत बनकर आया जो हर साल स्कूलों के दबाव में अनावश्यक खर्च झेलते हैं।
सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं – "ऐसे डीएम हर जिले में होने चाहिए।" और वाकई, एक संवेदनशील और ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी पूरे सिस्टम को बदल सकता है।
यह घटना बताती है कि जब आम जनता अपनी आवाज उठाती है और प्रशासन उसे सुनने को तैयार होता है, तब बदलाव मुमकिन होता है। इस कलेक्टर को एक लाइक नहीं, सलाम बनता है – क्योंकि शिक्षा को अधिकार मानने वाला समाज ही सच में आगे बढ़ता है।