नेपाल में योगी आदित्यनाथ को लेकर 'बवाल', हिंदू राज्य पर फिर छिड़ी बहस

madhurdarpan
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उत्तर प्रदेश लखनऊ 
इनपुट: रमाशंकर गुप्ता 

उत्तर प्रदेश :--- क्या नेपाल में फिर से राजतंत्र की बहाली होगी ? पिछले कुछ दिनों से मीडिया में लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं. इसकी वजह है नेपाल में होने वाले विरोध प्रदर्शन. यह प्रदर्शन सरकार की नाकामियों को लेकर है. हालांकि, इस प्रदर्शन का स्तर बहुत बड़ा नहीं है.प्रदर्शन में भाग लेने वालों में से कइयों ने नेपाल में राजशाही को फिर से स्थापित करने की मांग दोहराई है. वे चाहते हैं कि नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बने. इस समय नेपाल में प्रजातांत्रिक व्यवस्था है.
नेपाल में 2008 में राजशाही व्यवस्था को खत्म किया गया था. तब से नेपाल में लोकतंत्र है. उससे पहले नेपाल में 239 सालों तक लगातार राजशाही थी. दिक्कत ये है कि 2008 से लेकर अब तक नेपाल में 11 बार सरकार बदल चुकी है. इसलिए लोग तंग आ चुके हैं.

हिंदू राष्ट्र की क्यों उठ रही मांग
गत रविवार को नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पहुंचे थे. उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर भारी भीड़ एकत्रित थी. उनमें से ही कई लोगों ने एक नारा लगाया- नारायणरिटी खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं. नारायणहिटी नेपाल का राज पैलेस है और यहां पर राजा रहा करते थे.

यह जानना जरूरी है कि जब से ज्ञानेंद्र शाह को राजा के पद से हटाया गया है, तब से वे सार्वजनिक तौर पर कभी-कभार ही दिखते हैं. अब सवाल यह है कि अचानक ही नेपाल में राजशाही का बात क्यों उठने लगी है ? क्या नेपाली जनता वर्तमान सरकार से खुश नहीं है ? मीडिया रिपोर्ट में ऐसी कई खबरें आई हैं, जिसमें बताया जा रहा है कि जनता नेपाल की सत्ता में होने वाले बार-बार के परिवर्तन से खुश नहीं है. वह सरकार के परफॉ़र्मेंस से भी खुश नहीं है. सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रही है.

योगी आदित्यनाथ की तस्वीर पर विवाद

नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में उमड़ी भीड़ और वहां पर लगने वाले नारे को लेकर कई मायने लगाए जा रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस भीड़ में Sk शख्स उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर लिए खड़ा था.

जैसे ही यह तस्वीर मीडिया में आई, भारत को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. वैसे, इस प्रदर्शन को लेकर औपचारिक रूप से भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. इसके बावजूद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी का एक बयान मीडिया में आया है.

तस्वीर पर नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी ने दी प्रतिक्रिया

केपी शर्मा ओली की पार्टी ने कहा कि यह 1950 का दशक नहीं है, जब भारत ने भारतीय दूतावास में शरण लेने पहुंचे त्रिभुवन शाह को नेपाल का राजा बना दिया था, इसलिए अगर ज्ञानेंद्र शाह को लेकर अगर कोई योजना है तो बेहतर होगा कि उसे छोड़ दे.इसी बयान में आगे कहा गया है कि ज्ञानेंद्र शाह को महाकुंभ में आमंत्रित भी नहीं किया गया था, ऐसे में वह अपने आप को हिंदू ह्रदय सम्राट कैसे कह सकते हैं, और योगी ने भी उन्हें निमंत्रण नहीं दिया था.

नेपाल की कुछ पार्टियों ने हिंदू राष्ट्र का किया समर्थन

राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ज्ञानेंद्र शाह के पक्ष में दिख रही है. पार्टी खुलकर राजशाही का समर्थन भी करती है. इस पार्टी के एक नेता हैं रविंद्र मिश्र. उन्होंने मीडिया को बताया कि भीड़ में खड़ा कोई व्यक्ति योगी आदित्यनाथ की तस्वीर लेकर खड़ा था, अब उन्हें वो नियंत्रित तो नहीं कर सकते थे. जब बड़ी भीड़ इकट्ठा हो जाती है तो उनमें से कोई एक व्यक्ति क्या करेगा, इस पर किसी का कोई भी जोर नहीं होता है.
मिश्र ने कहा कि असल बात यह है कि सरकार असफल हो रही है, वह जनता के लिए काम नहीं कर रही है और वह हमारे प्रदर्शनों से भयभीत है. मिश्र ने कहा कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां जब भी सत्ता में होती हैं तो वह भारत के समर्थन में बयान देती हैं, लेकिन जब वह विरोधी पार्टी होती है तो भारत का विरोध करने लगती हैं.

नेपाल के राजा का भारत कनेक्शन

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल के राजा महेंद्र 1964 में आरएसएस मुख्यालय नागपुर आए थे. वहां पर उन्होंने एक रैली को संबोधित किया था. जबकि उस समय दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी. आरएसएस के मुखिया गुरु गोलवलकर थे. और ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस सरकार नहीं चाहती थी कि राजा महेंद्र यहां आएं.

राजा महेंद्र त्रिभुवन के बेटे थे. उन्होंने 1955 से लेकर 1972 तक देश पर राज किया था. इसके बाद राजा बीरेंद्र गद्दी पर आसीन हुए थे. बीरेंद्र के बाद ज्ञानेंद्र 2001 में राजा बने थे. ऐसा कहा जाता है कि इन दोनों के बीच संबंध बहुत मधुर नहीं थे. बिक्रम सिंह और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी. ज्ञानेंद्र शाह 2006 तक राजा बने रहे. उसके बाद भारी विरोध प्रदर्शन की वजह से उन्हें पद छोड़ना पड़ा. 2006 में नेपाल में पहली बार एक बहुदलीय सरकार बनी. माओवादियों के साथ शांति समझौता हुआ. नेपाल में राजा के लिए जरूरी था कि वह किसी न किसी हिंदू महिला के गर्भ से ही जन्म लें.

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