प्रयागराज कुंभ मेले के संदर्भ में इसे समझना आसान है, क्योंकि यह आयोजन नागा साधुओं के लिए विशेष महत्व रखता है..

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बलिया उत्तरप्रदेश 
इनपुट: अमीत कुमार गुप्ता 



बलिया उत्तरप्रदेश:---नागा साधु बनने की प्रक्रिया और उनका रहस्यमयी जीवन भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का गहन और रोचक विषय है। यह प्रक्रिया कठोर तप, आत्मसंयम और गहन साधना से जुड़ी होती है। प्रयागराज कुंभ मेले के संदर्भ में इसे समझना आसान है, क्योंकि यह आयोजन नागा साधुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।

नागा साधु बनने की प्रक्रिया:

1. दीक्षा प्रक्रिया:

नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को पहले अखाड़े से जुड़ना पड़ता है। भारत में कई प्रमुख अखाड़े हैं, जैसे जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आदि।

एक साधारण व्यक्ति को पहले "चेला" (शिष्य) बनाया जाता है और उसे गुरु के निर्देशानुसार जीवन जीने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

उसके बाद दीक्षा की प्रक्रिया होती है, जिसे "दिगंबर अवस्था" कहा जाता है। इसमें साधु सांसारिक बंधनों को त्यागकर नग्न (दिगंबर) हो जाते हैं और केवल भभूत लगाते हैं।

2. कठोर साधना:

नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को कठिन योग, तपस्या और ध्यान की विधियां सीखनी पड़ती हैं।

दीक्षा के दौरान उसका 'संन्यास संस्कार' होता है, जिसमें व्यक्ति अपने पूर्व जीवन का त्याग करता है। यह प्रतीकात्मक रूप से अपने "मृत्यु संस्कार" के रूप में देखा जाता है।

बाल, वस्त्र, और सांसारिक इच्छाओं का पूर्ण त्याग कर दिया जाता है।

3. जीवनशैली:

नागा साधु अत्यंत कठोर जीवन जीते हैं। वे नग्न रहते हैं, भभूत (चिता की राख) लगाते हैं और केवल भिक्षा पर जीवन यापन करते हैं।

वे हिमालय, गुफाओं या आश्रमों में रहकर साधना करते हैं।

प्रयागराज कुंभ में नागा साधु:

महत्वपूर्ण भूमिका: कुंभ मेला नागा साधुओं के लिए विशेष आयोजन है, जहां वे बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं।

शाही स्नान: कुंभ के दौरान गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में शाही स्नान का आयोजन होता है। नागा साधु इस स्नान को सबसे पवित्र मानते हैं और स्नान के दौरान आगे रहते हैं।

प्रदर्शन और आशीर्वाद: कुंभ में नागा साधु अपनी साधना शक्ति और योग का प्रदर्शन करते हैं।

आध्यात्मिक संवाद: कुंभ नागा साधुओं के लिए एक मंच है, जहां वे अपने अनुयायियों और आम जनता को उपदेश और आशीर्वाद देते हैं।

नागा साधुओं का रहस्य:

1. नग्नता: यह उनके सांसारिक मोह से पूर्ण मुक्ति और आत्मा के मूल स्वरूप को दर्शाता है।

2. भभूत: चिता की राख जीवन के नश्वर होने का प्रतीक है।

3. अलौकिक शक्ति: कठोर साधना और तप से वे अद्भुत योग साधनाएं और मानसिक नियंत्रण प्राप्त करते हैं। इसे उनकी "तांत्रिक शक्ति" भी कहा जाता है।

4. गुप्त जीवन: नागा साधु अपने जीवन का अधिकांश समय गुप्त स्थानों और गुफाओं में साधना करते हुए बिताते हैं, जिससे उनके जीवन में रहस्य और आकर्षण बना रहता है।

नागा साधु और समाज:

नागा साधु समाज से दूर रहते हैं लेकिन कुंभ जैसे आयोजनों में वे आध्यात्मिकता और संस्कृति के वाहक के रूप में उभरते हैं। उनका जीवन त्याग, साधना और संयम का प्रतीक है।

इस प्रकार नागा साधुओं का जीवन एक ऐसा पहलू है जो आध्यात्मिकता और रहस्य का संगम है, और कुंभ मेले में उनकी उपस्थिति इसे और भी भव्य बनाती है।

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