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    रूह अफ़ज़ा को शरबत कह देना शायद उसकी तौहीन होगी। ये कोई आम ड्रिंक नहीं,


    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट:सोशल‌ मिडिया 

    बलिया उत्तरप्रदेश:---रूह अफ़ज़ा को शरबत कह देना शायद उसकी तौहीन होगी। ये कोई आम ड्रिंक नहीं, बल्कि एक रवायत है, एक विरासत है, एक इमोशन है जो बोतल से ज़्यादा दिलों में बंद रहती है। ये वो एहसास है जिसे पीते नहीं, महसूस किया जाता है।
     
    गर्मियों की पहली लू जैसे ही चलती है, घर की बावर्ची खाने में रूह अफ़ज़ा की बोतल सामने आ जाती है – जैसे वालिदा की मोहब्बत ने गर्मी को हराने के लिए अपना कोई सीक्रेट हथियार निकाल लिया हो। एक पुरानी ट्रे में रखे दो गिलास, उनमें बर्फ के टुकड़े, और ऊपर से गहरा गुलाबी रूह अफ़ज़ा – वो सीन किसी पेंटिंग से कम नहीं लगता।

    जब कोई मेहमान घर आता है, तो उससे पहले आवाज़ आती – "बच्चा, ज़रा रूह अफ़ज़ा बनाना"। वालिदा की वो आवाज़ सिर्फ़ मेहमान नवाज़ी नहीं, एक ताज़ीम (सम्मान) है। एक गुलाबी शरबत में वो अपनापन घुला होता है जो चाय या कॉफी कभी नहीं दे सकती।

    रमज़ान की इफ्तारी में रूह अफ़ज़ा का गिलास सजे बग़ैर मेज़ अधूरी लगती है। हर रोज़े के बाद वो पहला घूँट जैसे रूह को ताज़ा कर देता है। उसमें मिठास नहीं, सुकून घुला होता था – और वो सुकून दुनिया की किसी दुकान में नहीं मिलता।

    कभी-कभी लगता है कि रूह अफ़ज़ा सिर्फ ज़ायका नहीं, एक पुल है – जो बचपन से आज तक जोड़ता है। रूह अफ़ज़ा की बोतल में सिर्फ़ गहरा गुलाबी लिक्विड नहीं रहता, बल्कि उसमें यादें तैरती हैं, इमोशंस डुबकियां लगाते हैं।

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