फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश:---उत्तर प्रदेश पुलिस का ‘दिमागी दिवाला’ एक बार फिर पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर गया है। इस बार उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में थानेदार साहब ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है जिसे सुनकर कानून भी शर्मा जाए और कॉमेडी शो वाले भी तालियां बजा दें।
मामला 2012 की एक चोरी से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट ने फरार आरोपी राजकुमार उर्फ पप्पू के खिलाफ धारा 82 CrPC के तहत उद्घोषणा पत्र जारी किया। लेकिन इस कानूनी दस्तावेज को समझने में हमारे जांबाज सब-इंस्पेक्टर बनवारीलाल जी ने ऐसी गलती कर दी, जिसकी कोई मिसाल नहीं।
‘पप्पू’ की जगह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) ‘नगमा खान’ तलाशने निकल पड़े!
उद्घोषणा पत्र को उन्होंने नॉन-बेलेबल वारंट समझ लिया और जिस जज ने आदेश जारी किया – यानी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) नगमा खान, उन्हें ही आरोपी मानकर तलाशने निकल पड़े! उन्होंने बाकायदा रिपोर्ट में लिखा – “आरोपी नगमा खान घर पर नहीं मिलीं, कृपया अगली कार्रवाई करें।”
जब ये रिपोर्ट कोर्ट में 23 मार्च को पेश हुई, तो खुद जज साहिबा भी अपना नाम आरोपी के तौर पर देखकर सन्न रह गईं। ACJM ने तुरंत SSP को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की।
कोर्ट का फटकार – “ना समझ, ना जिम्मेदारी!”
कोर्ट ने टिप्पणी में कहा – “जिस अफसर को उद्घोषणा की तामील करनी थी, उसे ना तो प्रक्रिया की समझ है और ना ही ये पता कि आदेश किसके खिलाफ है। ये ड्यूटी में घोर लापरवाही का उदाहरण है।” कोर्ट ने इस हरकत को ‘गंभीर चूक’ बताते हुए आईजी आगरा रेंज को विभागीय जांच और कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस तरह की लापरवाहियाँ नहीं रोकी गईं, तो ये किसी के भी मौलिक अधिकारों को कुचल सकती हैं। एक अधिकारी जो आदेश को पढ़ने की भी ज़हमत नहीं उठाता, वह कानून की रक्षा कै
से करेगा?