गोरखपुर उत्तरप्रदेश
गोरखपुरः--- एम्स गोरखपुर स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम है, लेकिन यहां के डॉक्टर्स प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान लगा रहे हैं. डॉक्टरों द्वारा मरीज के पर्चे में लिखी ढेर सारी दवाओं को मरीज खरीदने और खाने दोनों में परेशान हो रहे हैं. इनकी लिखी दवा अगर एम्स के दीवार से लगी मेडिकल स्टोर से नहीं ली गई तो फिर उसे कहीं और से खरीदना संभव भी नहीं. डॉक्टर की लिखी दवा एम्स के जेनरिक दवा काउंटर और न शहर के किसी अन्य मेडिकल स्टोर पर मिलती हैं. यह दवायें ट्रेड नेम की हैं, जो महंगी हैं. लोग हैरान और परेशान हैं लेकिन इसका कोई निदान नहीं निकल रहा है.
गेट पर खुली दुकानों पर ही मिलती दवाएंः कुशीनगर के रहने प्रभात राय के दो बच्चे के कान और दांत का इलाज एम्स में चल रहा है. वह पर्चे पर लिखी कुछ दवाओं को खरीदने को लेकर परेशान हो गये. लेकिन वह एम्स के बगल में ही मिली. यह दवाएं जानी मानी ब्रांड की हैं.
उन्होंने कहा कि OPD में काम करने वाले कुछ कर्मी ही मेडिकल स्टोर का नाम बताकर मरीज को दवा खरीदने के लिये वहीं भेज देते हैं. ऐसा ही हाल देवरिया के एक तीमारदार धनंजय का है जो अपने पिता की कुछ दिन की दवा एम्स के बगल से खरीदकर घर लौट गये, क्योंकि पैसे कम पड़ गए थे. फिर पर्चे पर लिखी दवा को वह देवरिया में खरीदना चाहे तो उन्हें नहीं मिली. आखिरकार उन्हें गोरखपुर आकार दवा खरीदना पड़ा. धनंजय का कहना है कि दवा के कारोबारी तो डॉक्टर तक से सेटिंग बना लिए हैं. उनके द्वारा लिखी जाने वाली ट्रेड नेम वाली दवाएं ही वह बेचते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि एम्स के ज्यादातर डॉक्टरों की लिखी दवाएं शहर में कहीं नहीं मिलेगी. सिर्फ एम्स के गेट नंबर 3 और पहले गेट के सामने की दुकान पर मिलेंगी.
कमीशन के लिए नहीं लिखते जेनरिक औषधि केंद्र की दवाः एम्स में इलाज कराने पहुंचे लोगों का कहना है कि डॉक्टरों की सेटिंग वाली दवाइयां सिर्फ इन्हीं दुकानो पर मिलती हैं. मेडिसिन, हड्डी, गायनी, न्यूरो, चर्म रोग, सर्जरी, ईएनटी की दवाएं इसमें शामिल हैं.ओपीडी में पूरी तरह से मनमानी है. मरीज इस उम्मीद से एम्स में आता है की दवाएं सस्ती लिखी जाती हैं, लेकिन यहां तो प्राइवेट डॉक्टर जैसी पर्ची लिखी जा रही है. एम्स के जिम्मेदारों का ध्यान पता नहीं, क्यों इधर नहीं पड़ रहा है. आसपास के मेडिकल स्टोर संचालक कहते हैं कि ओपीडी में बैठने वाले एक भी डॉक्टर जेनरिक और जन औषधि केंद्र की दवा लिखना नहीं चाहते. क्योंकि इसमें कमीशन के नाम पर इन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा. एम्स की मीडिया प्रभारी डॉक्टर साधना सिंह का कहना है कि दवाओं का तो अक्सर साल्ट नाम डॉक्टर को लिखने को कहा जाता है, अगर ट्रेड नेम वाली दवाई लिखी जा रही है तो यह गलत है, देखती हूं ऐसा क्यों हो रहा है।