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    अध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बसंतोत्सव : डाॅ० गणेश पाठक



    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 
            
    बलिया उत्तरप्रदेश:---माघ मास की बसंत पंचमी को मनाया जाने वाला प्रकृति पर्व बसंतोत्सव अध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। चूंकि माघ मास बसंत ऋतु का समय होता है और माघ मास के पंचमी तिथि को ही विद्या एवं ज्ञान की देवी सरस्वती का अवतरण दिवस माना जाता है,इसी लिए बसंत पंचमी के दि भीन मां सरस्वती की पूजा- अर्चना अत्यन्त ही धूम -  धाम से की जाती है।
         सृष्टि के निर्माण के बाद ब्रह्मा जी ने देखा कि चतुर्दिक सन्नाटा छाए हुए है तो उन्होंने अपने कमंडल से  जल छिड़का ,जिससे एक हाथ में वीणा, दूसरा हाथ वरद मुद्रा के रूप में एवं शेष दो हाथों में पुस्तक धारण किए हुए मां सरस्वती प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने सरस्वती से वीणा बजाने का अनुरोध किया और जैसे ही सरस्वती ने वीणा को झंकृत किया संसार के सभी जीव - जंतुओं में वाणी का संचार हो गया अर्थात् सबको वाणी मिल गयी और ब्रह्मा जी ने सरस्वती को वाणी की देवी कहा।
        बसंत पंचमी के समय प्रकृति का कण - कण खिल उठता है।मानव सहित सभी जीव जंतुओं एवं प्रकृति में उल्लास का संचार हो जाता है। इसी लिए बसंत के समय को ऋतुराज कहा जाता है। ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति को नया जीवन प्राप्त हो जाता है। कड़कड़ाती ठंड के बाद प्रकृति अपने पूर्ण निखार में आ जाती है। सरसो के पीले फूल, पलास के लाल फूल,आम के मद मस्त  बौर, गेहूं की लहराती एवं झूमती बालियां,फूलों पर मंडराती तितलियां एवं बौराए हुए भौंरे अपनी मनोरम छटा से सम्पूर्ण प्रकृति को मादक बना देते हैं। मानव सहित पशु - पक्षियों में भी नयी चेतना का संचार हो जाता है। सर्वत्र मादकता एवं प्रेम का वातावरण छा जाता है। इसी लिए बसंत को प्रेम के देवता कामदेव का मित्र माना जाता है। कामदेव पूरे वातावरण  को मादकता  से सराबोर कर देते हैं। संभवत: इसी लिए बसंतोत्सव को कामदेव का 'स्मृति पर्व' एवं बसंत ऋतु को 'प्रेम की ऋतु'' कहा जाता है।
     बसंत पंचमी को मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। श्रीकृष्ण एवं कामदेव इस उत्सव के अधिदेवता हैं। अनेक ग्रंथों में बसंत का आगमन बसंत पंचमी कै ही माना जाता है और इसी दिन मदन देव की पहली पूजा की जाती है। कामदेव के पंचशब्द ( शब्द, रूप, स्पर्श, रस एवं गंध) प्रकृति संसार में अभिसार को आमंत्रित करते हैं। बसंत को कामदेव का पुत्र माना जाता है, जिनकी उत्पत्ति माघ मास की पंचमी को ही हुई,इसी लिए बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। बसंत की महिमा का वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण ने कहा है कि 'मैं ऋतुओं में बसंत हूं'।
     इस समय रबी की फसलें भी लगभग तैयार होने लगती है। इसलिए किसानों के लिए बसंतोत्सव का विशेष महत्व होता है। इस दिन सभी लोग एक दूसरे को गुलाल लगाकर खुशी का इजहार करते हैं।ऐसा भी आख्यान मिलता है कि वन गमन के दौरान बसंत पंचमी को ही राम भिलनी से मिलने उनकी कुटिया में गए थे।
         बसंत पंचमी का दिन अनेक ऐतिहासिक घटनाओं से भी जुड़ा हुआ है। बसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। जब मुसम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को मृत्यु दंड देने से पहले उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा तो कवि चंद्रवरदाई के कहने पर मुहमद गोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर  तवा पर चोट मारने का संकेत दिया। 
    जब मुहम्मद गोरी ने ऐसा किया तो उसी समय चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज को संकेत में कहा -
    चार बांस चोबीस गज,अंगुल अष्ट प्रमान।
    ता ऊपर सुल्तान है,मत चुको चौहान।।
         
    चंद्रवरदाई की यह बात सुनते ही पृथ्वीराज चौहान ने अनुमान लगाकर अपना शब्दवेधी बाण मुहम्मद गोरी की तरफ चलाया जो सीधे मुहम्मद गोरी के सीने में जाकर लगा। इसके बाद तत्काल ही चंद्रवरदाई एवं पृथ्वीराज चौहान ने एक दूसरे को छूरा भोपकर अपना बलिदान दे दिया। सन् 1192 ई० का यह दिन बसंत पंचमी का ही दिन था।
          ऐसा उल्लेख मिलता है कि गुरू राम सिंह कूका का जन्म 1816 ई० में बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। गुरू राम सिंह कूका महाराजा रणजीत सिंह की सेना में भी रहे। इनके पंथ को 'कूका पंथ' कहा गया। 1872 ई० में जब अपने गांव में लगे मेले में आए तो उनके एक शिष्य को मुस्लिमों ने घेर लिया और मार - पीट कर उनके मुंह में मांस ढूस दिया। यह सुनकर राम सिंह कूका के शिष्य गांव पर हमला कर दिए। तब तक अंग्रेजी सेना भी आ गयी। इस संघर्ष में 68 शिष्य पकड़ लिए गाए,जिनमें 50 को तोप से उड़ा दिया गया।  गुरू राम सिं कुका को भी पकड़ लिया गया और वर्मा की जेल में भेज दिया गया। 1885 ई० में जेल में ही उनकी मृत्यु हो गयी।
        राजा भोज का जन्म भी बसंत पंचमी को ही हुआ था। महाप्राण कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी 'निराला' का भी जन्म बसंत पंचमी को ही हुआ था। 
        इस प्रकार स्पष्ट है कि माघ मास की पंचमी को मनाए जाने वाला पर्व बसंतोत्सव की अपनी विशेष विशेषता है। इस समय सम्पूर्ण प्रकृति उल्लासमय वातावरण में प्रफुल्लित होकर जीव - जंतुओं के जीवन में भी नए उल्लास एवं जोश का संचार कर जीवन को सुखमय बना देती है।

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